Wednesday, 3 April 2019

ओ पगली !

ओ पगली !

मैं....
जो कभी सिर्फ एक मैं नहीं रहा ; 
तुझे पाने की ज़िद में !

मैं.... 
जो कभी सिर्फ एक मैं नहीं रहा ; 
तुझे महज़ मेरे पास बुलाने की ज़िद में !

मैं.... 
जो कभी सिर्फ एक मैं नहीं रहा ;
एक सिर्फ तुझे बेइंतेहा चाहने की ज़िद में !

मैं.... 
जो कभी सिर्फ एक मैं नहीं रहा ;
एक सिर्फ तुझे गुनगुनाने की ज़िद में !

मैं.... 
जो कभी सिर्फ एक मैं ही था ; 
तुझसे मिलने के पहले ! 

ओ "पगली" वो, 
मैं अब एक मैं नहीं रहा ;
तुझसे मिलने के बाद ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !