Friday 26 April 2019

शब्द शब्दों में तलाशते मुझे है !



शब्द शब्दों में ही कहीं, 
तलाशते है मुझ को ;

और मैं उन शब्दों में; 
तलाशता हूँ तुम को ;

जैसे रात पत्तियों सी, 
होकर टटोलती है सबनम को ;

चाँद मंद-मंद जुगनू सा, 
होकर खोजता है चकोर को ;

नदी खामोश खल-खल, 
बहती है पकड़ कर अपने किनारों को ; 

तब दूर कंही सन्नाटों के,
जंगल में सुनाई देता है मुझ को; 

कुछ खनकते शब्दों का शोर इधर, 
पगडण्डी ताकती है अपने किनारों को; 

तकते एक दूजे को बढ़ते है दो कदम, 
और उन कदमो में थामते है मुझ को; 

और मैं उन कदमो में एक, 
बस तलाशता हूँ अपनी मंज़िल को; 

शब्द शब्दों में ही कहीं, 
तलाशते है मुझ को; 

और मैं उन शब्दों में, 
तलाशता हूँ तुम को !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !