नव नूतन प्रेम !
कुछ ...
किस तरह,
किया जाए प्रेम,
कि उसे लाया जा सके,
बाँहों की परिधि के,
बिलकुल मध्य;
कुछ ...
किस तरह,
बिठाई जाए,
मुस्कान होंठो पर,
कि वो बनावट के,
कटघरे में कभी ना,
खड़ी हो दोषियों की,
तरह कभी भी;
कुछ...
इस तरह किया,
जाए समर्पण की,
शक का कीड़ा जन्म,
ही ना ले सके कभी;
कुछ...
ना कुछ रोज,
किया जाए नया,
उस पुराने प्रेम में,
भी ताकि पुराने होने;
का भान ही ना हो कभी !
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