Saturday, 20 April 2019

नव नूतन प्रेम !

नव नूतन प्रेम !

कुछ ...     
किस तरह,
किया जाए प्रेम,
कि उसे लाया जा सके,
बाँहों की परिधि के, 
बिलकुल मध्य;
कुछ ... 
किस तरह,
बिठाई जाए,
मुस्कान होंठो पर,
कि वो बनावट के,
कटघरे में कभी ना, 
खड़ी हो दोषियों की,  
तरह कभी भी; 
कुछ...
इस तरह किया, 
जाए समर्पण की, 
शक का कीड़ा जन्म, 
ही ना ले सके कभी; 
कुछ...
ना कुछ रोज, 
किया जाए नया, 
उस पुराने प्रेम में, 
भी ताकि पुराने होने; 
का भान ही ना हो कभी !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !