तुमसे प्रेम करके
जितना मैंने
खुद को बदला है
तुम्हारी मज़बूरियों
और इच्छाओं के
प्रमादी प्रमेय के
हिसाब से
उतना ही तुम
अनुपातों के नियम
को धता देकर
सिद्ध करती रही
कि चाहतों के
गणित को सही-सही
समझना मेरे वश
की बात नहीं
पर तुम्हे कैसे
बताऊ मैं की
मैंने समझा भी सही
और किया भी सही
पर तुम अब तक
नहीं स्वीकार पर पायी
की प्रेम में बगावत
निहित है .....
जितना मैंने
खुद को बदला है
तुम्हारी मज़बूरियों
और इच्छाओं के
प्रमादी प्रमेय के
हिसाब से
उतना ही तुम
अनुपातों के नियम
को धता देकर
सिद्ध करती रही
कि चाहतों के
गणित को सही-सही
समझना मेरे वश
की बात नहीं
पर तुम्हे कैसे
बताऊ मैं की
मैंने समझा भी सही
और किया भी सही
पर तुम अब तक
नहीं स्वीकार पर पायी
की प्रेम में बगावत
निहित है .....
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