Wednesday, 26 July 2017

बस तुम्हें फूल देता रहूँगा 

तुममें जबसे खोया   
तुझमे मेरे बीजों 
को बोया अब 
जब फूल खिलें हैं
काँटों में भी उलझे हैं....
तब तुम बाँहों 
में आकर मेरी 
यूँ घेर लेती हो
उन्हीं फूलों को
बिखेर देती हो
और कहती हो -
भूल जाओ दर्द को....
ये जिद ही है मेरी
कि मैं तुममें यूँ ही 
खोया रहूँगा 
और काँटे खुद को 
चुभोता रहूँगा 
बस तुम्हें फूल देता रहूँगा 
पर क्या तुम 
कभी उन फूलो को 
मेरी बांहो में खेलने दोगी?

No comments:

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !