पता ही नहीं किन्यु
तुम तक पहुँचने से पहले
हर बार ही
लड़खड़ा कर गिर
जाते है मेरी
अभिव्यक्ति
के कुछ शब्द
घायल शब्दों की
की झिर्री से
बिखर जाती है ;
मेरी चाहत ;
बह जाते है
मेरे एहसास
और उघड़ जाते है ;
मेरे अधूरे स्वप्न
उफ़ तुझसे मिलन की प्यास
में मैं ही क़द्र नहीं
कर पाता हु ;
मेरे इन एहसासों की
अब सोचा है
इज्जत बख्सूंगा इन
ज़ज़्बातों को इन्हें यु नहीं
बिखरने दूंगा अब
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