Friday, 14 July 2017

मैं खिड़की पे बैठा रहा ...


रात भर सोया नही मैं...
सोचता तुमको रहा ...
चांदनी खिड़की पे खड़ी थी...
मैं खिड़की पे बैठा रहा ...
चांदनी से बातें हुई...
रोशन सितारों को तका...
नींद पास में थी...
पलकें मगर झपकी नहीं...
मुझसे नाराज हैं....
चादर, बिस्तर, तकिये मेरे...
उनको सोना है...मगर..
मैं सोचता तुमको रहा ...
आंखों में उलझे हैं ख्वाब कितने..
क्या जानोगी तुम....
इक बार बस तुम 
पास मेरे आ जाओ अब ..
देखना फ़िर मानोगी तुम...
रात मुझसे अक्सर....
पूछा करती है एक सवाल..
जुल्फ़ उलझती हवा कहती है..
उसे भी है मलाल....
क्यूं सोता नहीं मैं....
तुमने कभी जाना ही नहीं...
किस तकलीफ में जी रहा हु मैं ..

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !