Wednesday 12 July 2017

इसे थमना ही होगा.. 

धरती की चाह
नहीं ऐसा नहीं होगा..... 
ये धीमी.. 
अजब सी बारिश.... 
इसे थमना ही होगा.. 
नहीं तो लगता है 
मेरा दम घुट जायेगा........ 
जैसे सांस नहीं ले पाउंगी.... 
मुझे खुला आकाश चाहिये..... 
नीला -चमकीला.... 
उष्ण धूप चाहिये मुझे..... 
खुली हवा.. चमकीले तारे ..... 
चांदनी रात...... 
ये चाहता है मेरा मन.... 
जानती हूं बादल छंट जायेंगे..... 
इन्हें मुझे मेरा आकाश 
लौटाना ही होगा....... 
अब मुझे इनकी चाह नहीं....... 
आकाश को अब मिलेगी सदा 
धुली-खुली... सुंदर.... 
वसुंधरा जैसा वो चाहता है ... 
वो भी नीले आसमां तले...........    
                  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !