मेरे जिस्म की
रेतीली बंजर ज़मीन पर
ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं,
बसंत भी दे रहा दस्तक
चाहत के फूल मुस्कुराए हैं,
भटक रहे हैं कुछ लम्हे
तेरी ज़मीन की तलाश में,
बिखर गये हैं शब्दों के बौर
तेरे लबों की प्यास में
अब हर साल शब्दों के
कुछ नये पेड़ उग आते हैं,
नये मायनों में ढल कर
रेगिस्तान में जगमगाते हैं,
अभिव्यक्ति की खुश्बू को
बरसों से तेरी प्रतीक्षा है ,
सुना है बरगद का पेड़
सालों साल जीता है ....
सुनो आकर तुम मेरी
अभिव्यक्ति अब तो
मेरे पास ....
रेतीली बंजर ज़मीन पर
ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं,
बसंत भी दे रहा दस्तक
चाहत के फूल मुस्कुराए हैं,
भटक रहे हैं कुछ लम्हे
तेरी ज़मीन की तलाश में,
बिखर गये हैं शब्दों के बौर
तेरे लबों की प्यास में
अब हर साल शब्दों के
कुछ नये पेड़ उग आते हैं,
नये मायनों में ढल कर
रेगिस्तान में जगमगाते हैं,
अभिव्यक्ति की खुश्बू को
बरसों से तेरी प्रतीक्षा है ,
सुना है बरगद का पेड़
सालों साल जीता है ....
सुनो आकर तुम मेरी
अभिव्यक्ति अब तो
मेरे पास ....
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