जिन दिनों तुम से
बात नहीं होती,
दिन यूं गुज़रते हैं,
के जैसे एक
उम्र गुज़री हो तन्हा ,
रात है,
के गुज़रती ही नहीं,
जिंदगी,एक रूठे
दोस्त की मानिंद,
साथ तो चलती है,
पर बात नहीं करती,
कभी कभी यूं
भी लगता है,
जैसे वीरान सड़क
पर बिछी चांदनी,
धुन्ध से लिपट लिपट
सिसकियाँ भरती है,
कहती कुछ वोह भी नहीं,
तुम्हारी तरह
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