Tuesday 4 July 2017

बांहो में तुम्हारा होना

इस पहर में 
अपने बारे में कहूं तो 
मैं एक लगभग 
सुनसान कमरे में  
मलमल के बिस्तर पे 
अपनी छाती पे 
दोनों हाथ बांधे 
ये सोंचने के लिए 
बाध्य हूँ कि 
इन बंधे हुए बाहों के 
बीच तुम्हारा होना 
एक जरुरत थी  
जो कि हो नहीं पायी पूरी 
अब तक  और ये जरुरत 
मेरी है सिर्फ तो शायद
कभी पूरी हो भी नहीं
जबतक की तुम्हारी जरुरत 
नहीं बन जाती

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !