इस पहर में
अपने बारे में कहूं तो
मैं एक लगभग
सुनसान कमरे में
मलमल के बिस्तर पे
अपनी छाती पे
दोनों हाथ बांधे
ये सोंचने के लिए
बाध्य हूँ कि
इन बंधे हुए बाहों के
बीच तुम्हारा होना
एक जरुरत थी
जो कि हो नहीं पायी पूरी
अब तक और ये जरुरत
मेरी है सिर्फ तो शायद
कभी पूरी हो भी नहीं
जबतक की तुम्हारी जरुरत
नहीं बन जाती
अपने बारे में कहूं तो
मैं एक लगभग
सुनसान कमरे में
मलमल के बिस्तर पे
अपनी छाती पे
दोनों हाथ बांधे
ये सोंचने के लिए
बाध्य हूँ कि
इन बंधे हुए बाहों के
बीच तुम्हारा होना
एक जरुरत थी
जो कि हो नहीं पायी पूरी
अब तक और ये जरुरत
मेरी है सिर्फ तो शायद
कभी पूरी हो भी नहीं
जबतक की तुम्हारी जरुरत
नहीं बन जाती
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