Monday 31 July 2017

तन की कलाओं का पहर

मेरे लिए प्रेम 
नाभि से चलकर  
कंठ तक आकर 
गूंजने वाला "ॐ" है 
तुम्हारा प्रेम दस्तावेजों 
पर दर्ज तुम्हारे 
अंगूठे की छाप सा है 
आधी रात का वो 
पहर तन की कलाओं का 
पहर होता है तब अक्सर 
मेरे घर में लगे सारे दर्पण
में तुम्हारी तस्वीर उभर 
आती है स्वतः ही और 
तब तुम होती हो पूर्ण 
श्रृंगार धारण किये हुए 
जानते हुए की अगले ही पल
ये सारे श्रृंगार होंगे 
मेरे हवाले 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !