मैं समझती हूं तुम्हें....
शामिल हूं तुम में हमेशा..
हर बार कहती रही वो ..
पर जब भी खामोशियों को...
सुनने का वक्त आया....
धङकन भी कहां सुन सकी वो ....
कहने को सब कह देते हैं, पर..
दिल की जुबां कहां समझता है कोई....
तुम्हारे दर्द का एहसास है मुझे...
महसूस करती हूं तुम्हें हमेशा...
हर बार जताती रही वो...
पर जब भी ज़ख्मों को...
सहने का वक्त आया....
जरा सा भी दर्द
कहां सह सकी वो ...
शामिल हूं तुम में हमेशा..
हर बार कहती रही वो ..
पर जब भी खामोशियों को...
सुनने का वक्त आया....
धङकन भी कहां सुन सकी वो ....
कहने को सब कह देते हैं, पर..
दिल की जुबां कहां समझता है कोई....
तुम्हारे दर्द का एहसास है मुझे...
महसूस करती हूं तुम्हें हमेशा...
हर बार जताती रही वो...
पर जब भी ज़ख्मों को...
सहने का वक्त आया....
जरा सा भी दर्द
कहां सह सकी वो ...
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