रतजगे करता है वो ...
पूछती हूं... उससे
बंजर हुई नींदों की वजह...
कहता है..बस यूं ही.........
कभी बे-साख्ता कविता ..
कहे जाता है..
कभी ग़जलें लिखता है...
पूछती हूं..
हवाओं पे सज़दे की वजह..
तो.. बस यूं ही...
मेरा दीदार किया करता है...
कभी ख्वाबों में...
कभी तस्वीरों में...
पूछती हूं..
खोयी-खोयी खामोशी..
का सबब...
फ़िर वही.. बस यूं ही...
जो वजह है इन सबकी
वजह वो ही पूछे तो
उसे क्या बताया जाये
जो सब जानती है
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