मौन तो होना ही है
एक दिन चाहे नियति के चक्र में
चाहे सो जाए
चाँद की गोद में
या छू ले
उस दहकते सूरज को...
पर प्रिय !
रोक सकते हो तो रोक लो
उन तरंगो को
जो तुमसे निकल कर
आती है मुझतक...
तुम मुझे
अपने तरंगो में
इस तरह उलझा कर
कितना सुलझाओगे
या मुझसे भी
निकलती तरंगो में
तुम भी
मेरी तरह ही
उलझ कर रह जाओगे..?
एक दिन चाहे नियति के चक्र में
चाहे सो जाए
चाँद की गोद में
या छू ले
उस दहकते सूरज को...
पर प्रिय !
रोक सकते हो तो रोक लो
उन तरंगो को
जो तुमसे निकल कर
आती है मुझतक...
तुम मुझे
अपने तरंगो में
इस तरह उलझा कर
कितना सुलझाओगे
या मुझसे भी
निकलती तरंगो में
तुम भी
मेरी तरह ही
उलझ कर रह जाओगे..?
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