Monday, 7 August 2017

अभी कंहा हो तुम?

मैंने सोचा 
कैसे तुम्हे 
ये बतलाऊ की
तुमसे कितना 
प्रेम करता हु मैं
वो सुनने के लिए 
तुम्हारे पास न 
वक़्त था तब ना 
वक़्त है अब 
ऐसे में सोचा मैंने
किन्यु ना शुरू 
करू अभिव्यक्त करना
प्रेम मेरा जिसको
पढ़ कर तुम्हे ऐतबार हो  
तबसे लिख रहा हु मैं
कविता पर सोचा नहीं था 
की तुम वंही बस जाओगी 
मेरी कविताओं में 
अभी कंहा हो तुम?
मेरी कविता में ?
अब बहुत वर्ष हुए 
तुम्हे वंहा रहते हुए 
चलो अब मेरी होकर रहो 
बची ज़िन्दगी के लिए 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !