Saturday 5 August 2017

मैं अब भी इंतज़ार में हु 


हमदोनो को केवल 
एक-दूसरे से प्रेम ही 
तो करना था:
साथ लिए तुम्हारी 
सभी मज़बूरियों को, 
रिश्तों और नातों को,
और उस रज्ज को भी 
जो उगाती है पेड़ो को, 
और फिर उनपर खिलाती है
फूल और पत्तिओं को 
पर इतना भी नहीं हो सका हमसे 
जिम्मेदारियों की उलझन में
उलझ कर रह गया है तुम्हारा प्रेम
और मैं अब भी इंतज़ार में हु 
तुम्हारे आने के 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !