हमदोनो को केवल
एक-दूसरे से प्रेम ही
तो करना था:
साथ लिए तुम्हारी
सभी मज़बूरियों को,
रिश्तों और नातों को,
और उस रज्ज को भी
जो उगाती है पेड़ो को,
और फिर उनपर खिलाती है
फूल और पत्तिओं को
पर इतना भी नहीं हो सका हमसे
जिम्मेदारियों की उलझन में
उलझ कर रह गया है तुम्हारा प्रेम
और मैं अब भी इंतज़ार में हु
तुम्हारे आने के
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