Thursday, 10 August 2017

आख़री प्रतीक्षा 

मैं अपनी सभी 
लिखी प्रेम कविता को 
बचाना चाहता हूँ
वैसे ही जैसे बचाता आया हूँ 
अपने प्रेम को 
इस जीवन के हर 
कठिन परिस्थितिओं में भी
लेकिन अब मैं अपने आप को 
बचाते-बचाते
थक गया हूँ
मेरी ये आख़री प्रतीक्षा 
मेरे प्रेम को आखिरी भेंट है
इसे स्वीकार करो
और आखरी बार 
मुझसे आकर मिलो
उस घर में जंहा 
कोने कोने में बचा
कर रखा तुम्हारा 
एहसास 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !