मैं अपनी सभी
लिखी प्रेम कविता को
बचाना चाहता हूँ
वैसे ही जैसे बचाता आया हूँ
अपने प्रेम को
इस जीवन के हर
कठिन परिस्थितिओं में भी
लेकिन अब मैं अपने आप को
बचाते-बचाते
थक गया हूँ
मेरी ये आख़री प्रतीक्षा
मेरे प्रेम को आखिरी भेंट है
इसे स्वीकार करो
और आखरी बार
मुझसे आकर मिलो
उस घर में जंहा
कोने कोने में बचा
कर रखा तुम्हारा
एहसास
लिखी प्रेम कविता को
बचाना चाहता हूँ
वैसे ही जैसे बचाता आया हूँ
अपने प्रेम को
इस जीवन के हर
कठिन परिस्थितिओं में भी
लेकिन अब मैं अपने आप को
बचाते-बचाते
थक गया हूँ
मेरी ये आख़री प्रतीक्षा
मेरे प्रेम को आखिरी भेंट है
इसे स्वीकार करो
और आखरी बार
मुझसे आकर मिलो
उस घर में जंहा
कोने कोने में बचा
कर रखा तुम्हारा
एहसास
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