प्रेम जो तुम देती हो
मुझे वो प्रेम तुम्हारा है
या है वो जो मैं देता हु तुम्हे
आज तक मुझे समझ नहीं आया
किन्यु की अगर मेरा दिया
तुम मुझे लौटती हो तो
मेरे ही प्रेम में कोई कमी है
और अगर तुम मुझे अपना
प्रेम देती हो तो फिर प्रेम के
बारे जितना कुछ आज तक
लिखा पढ़ा मैंने सब झूठा सा
प्रतीत होने लगा है की
स्त्री प्रेम पुरुष प्रेम से
श्रेस्ठ होता है जैसे
स्त्री हर मायने में पुरुष
से श्रेठ होती है
मुझे वो प्रेम तुम्हारा है
या है वो जो मैं देता हु तुम्हे
आज तक मुझे समझ नहीं आया
किन्यु की अगर मेरा दिया
तुम मुझे लौटती हो तो
मेरे ही प्रेम में कोई कमी है
और अगर तुम मुझे अपना
प्रेम देती हो तो फिर प्रेम के
बारे जितना कुछ आज तक
लिखा पढ़ा मैंने सब झूठा सा
प्रतीत होने लगा है की
स्त्री प्रेम पुरुष प्रेम से
श्रेस्ठ होता है जैसे
स्त्री हर मायने में पुरुष
से श्रेठ होती है
No comments:
Post a Comment