Thursday, 17 August 2017

सब झूठा सा प्रतीत होने लगा है

प्रेम जो तुम देती हो
मुझे वो प्रेम तुम्हारा है 
या है वो जो मैं देता हु तुम्हे
आज तक मुझे समझ नहीं आया
किन्यु की अगर मेरा दिया 
तुम मुझे लौटती हो तो 
मेरे ही प्रेम में कोई कमी है 
और अगर तुम मुझे अपना
प्रेम देती हो तो फिर प्रेम के 
बारे जितना कुछ आज तक 
लिखा पढ़ा मैंने सब झूठा सा
प्रतीत होने लगा है की 
स्त्री प्रेम पुरुष प्रेम से 
श्रेस्ठ होता है जैसे 
स्त्री हर मायने में पुरुष 
से श्रेठ होती है 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !