प्रेम की याददास्त
कमजोर होती है ;
और तन की याददास्त
तीक्ष्ण होती है और
सदैव तीक्ष्ण ही रहती है;
प्रेम का स्वाभाव चंचल है
वो भागता फिरता है ;
और देह का स्वाभाव है
स्थिर रहना वो कंही जाता नहीं ;
इसलिए प्रेम भूल जाता है और
देह याद रखती है सदैव;
प्रेम करता है कल्पनाएं और
देह पागलपन की हद्द पार करता है
इसलिए प्रेम में देह की महत्ता
कभी कम नहीं आंकी जा सकती
कमजोर होती है ;
और तन की याददास्त
तीक्ष्ण होती है और
सदैव तीक्ष्ण ही रहती है;
प्रेम का स्वाभाव चंचल है
वो भागता फिरता है ;
और देह का स्वाभाव है
स्थिर रहना वो कंही जाता नहीं ;
इसलिए प्रेम भूल जाता है और
देह याद रखती है सदैव;
प्रेम करता है कल्पनाएं और
देह पागलपन की हद्द पार करता है
इसलिए प्रेम में देह की महत्ता
कभी कम नहीं आंकी जा सकती
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