Tuesday 22 August 2017

साँझ का सुहानापन

अब जब तुम नहीं हो
साथ मेरे तो साँझ का 
सुहानापन भी कंहा महसूस
कर पाता हु अब मैं वो तो 
तुम्हारी तरह उड़ जाती है 
फुर्र से आकाश के पार
फिर रह जाते है केवल बादल
वैसे पहले भी तुम 
कंहा होती थी साथ मेरे
बस यु ही कुछ पलो के लिए
आती थी फुर्सत में 
मिलने मुझसे
अब मैं और बादल 
दोनों बतियाते है 
अपने अपने प्रेम 
के बारे 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !