Wednesday, 2 August 2017

विरह की कहानी

कभी महसूसना 
तुम भी सूखे पत्तों की 
फड़फड़ाहट तुम्हे सुनाई देंगी 
उनकी बेचैनी वो सूखे पत्ते 
करहाते हुए कहते है 
अपने विरह की कहानी 
दर्द होता है सुनते ही 
उनकी कराहटें मन होता है 
उन्हें फिर से रोप दू
उसी पेड़ में जंहा से 
अलग हुए है वो 
और ये सोचते हुए
रुक जाता हु मैं भी 
एक जगह पर जैसे 
कई बार मौसम 
ठहर जाता भूल कर 
अपनी नियति 
नहीं जाना चाहता 
उन पत्तो की तरह 
तुमसे अलग होकर 
दूर अब मैं 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !