कभी महसूसना
तुम भी सूखे पत्तों की
फड़फड़ाहट तुम्हे सुनाई देंगी
उनकी बेचैनी वो सूखे पत्ते
करहाते हुए कहते है
अपने विरह की कहानी
दर्द होता है सुनते ही
उनकी कराहटें मन होता है
उन्हें फिर से रोप दू
उसी पेड़ में जंहा से
अलग हुए है वो
और ये सोचते हुए
रुक जाता हु मैं भी
एक जगह पर जैसे
कई बार मौसम
ठहर जाता भूल कर
अपनी नियति
नहीं जाना चाहता
उन पत्तो की तरह
तुमसे अलग होकर
दूर अब मैं
तुम भी सूखे पत्तों की
फड़फड़ाहट तुम्हे सुनाई देंगी
उनकी बेचैनी वो सूखे पत्ते
करहाते हुए कहते है
अपने विरह की कहानी
दर्द होता है सुनते ही
उनकी कराहटें मन होता है
उन्हें फिर से रोप दू
उसी पेड़ में जंहा से
अलग हुए है वो
और ये सोचते हुए
रुक जाता हु मैं भी
एक जगह पर जैसे
कई बार मौसम
ठहर जाता भूल कर
अपनी नियति
नहीं जाना चाहता
उन पत्तो की तरह
तुमसे अलग होकर
दूर अब मैं
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