Thursday, 2 May 2019

मोहब्बत भी अजीब होती है !

मोहब्बत भी अजीब होती है !

रूहानी दिलों में जब भी, 
ये मोहब्बत जागती है;

तो पहले ये नींदें उजाड़ती है,
फिर ये झूमती है और नाचती है;

ये फैलती है और बोलती है, 
फिर हर एक किये गए वादे को तौलती है;

सूली और सूल सी होती है, 
ये मोहब्बत भी कितनी अजीब होती है; 

ये जब फैलती है तो पेड़ बनती है, 
और ये छाँव कर के भी धूप देती है; 

कभी कभी तो बस आप अपनी, 
ही रक़ीब होती है ये मोहब्बत;

ये मोहब्बत कितनी अजीब होती है, 
लहू की सूरत ले रगों में दौड़ती है; 

फिर वो ही ख़्वाब बन कर रूहानी, 
दिलों की नज़रों में ठहरती है; 

बादल बन कर फ़लक से बरसती है, 
गर इसे दरिया में डाल आओ तो भी; 
एक समंदर बनकर उभरती है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !