मोहब्बत भी अजीब होती है !
रूहानी दिलों में जब भी,
ये मोहब्बत जागती है;
तो पहले ये नींदें उजाड़ती है,
फिर ये झूमती है और नाचती है;
ये फैलती है और बोलती है,
फिर हर एक किये गए वादे को तौलती है;
सूली और सूल सी होती है,
ये मोहब्बत भी कितनी अजीब होती है;
ये जब फैलती है तो पेड़ बनती है,
और ये छाँव कर के भी धूप देती है;
कभी कभी तो बस आप अपनी,
ही रक़ीब होती है ये मोहब्बत;
ये मोहब्बत कितनी अजीब होती है,
लहू की सूरत ले रगों में दौड़ती है;
फिर वो ही ख़्वाब बन कर रूहानी,
दिलों की नज़रों में ठहरती है;
बादल बन कर फ़लक से बरसती है,
गर इसे दरिया में डाल आओ तो भी;
एक समंदर बनकर उभरती है !
रूहानी दिलों में जब भी,
ये मोहब्बत जागती है;
तो पहले ये नींदें उजाड़ती है,
फिर ये झूमती है और नाचती है;
ये फैलती है और बोलती है,
फिर हर एक किये गए वादे को तौलती है;
सूली और सूल सी होती है,
ये मोहब्बत भी कितनी अजीब होती है;
ये जब फैलती है तो पेड़ बनती है,
और ये छाँव कर के भी धूप देती है;
कभी कभी तो बस आप अपनी,
ही रक़ीब होती है ये मोहब्बत;
ये मोहब्बत कितनी अजीब होती है,
लहू की सूरत ले रगों में दौड़ती है;
फिर वो ही ख़्वाब बन कर रूहानी,
दिलों की नज़रों में ठहरती है;
बादल बन कर फ़लक से बरसती है,
गर इसे दरिया में डाल आओ तो भी;
एक समंदर बनकर उभरती है !
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