तू नहीं पास मेरे मगर
ऐसा भी नहीं की अकेलेपन
की आदत है हमें
एक तू ही तो है जिसकी
सोहबत पसंद है हमें
एक तेरी कुर्बत से ही तो
हिज़रत है हमें
सर सज़दे में झुका है
ना समझना की अड़ने
की आदत है हमें
यूँ ही इबादत करने की
तो आदत है हमें
यूँ तो कई आफताब है
इस जहाँ में मगर एक
उसी सितारे से मोहब्बत
की इज़ाज़त है हमें
ठूँठ की तरह अकड़
कर नहीं रहते हरे-भरे
दरख़्त जैसे मेहरबां लहज़े
की तो आदत है हमें
हर एक दर पर सर
नहीं झुकाते पर जिस
दर सर झुकाते है फिर
उसी दर पर सकुनत है हमें
कई जन्मों तक माँगा है
तुझे उस खुदा से तभी तो
मयस्सर तेरी कुर्बत है हमें !
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