मेरे ख़ुदा चाहे किसी भी सूरत
चाहे पर उसे मिला मुझ से
या फिर तू ऐसा कर मुझे भी
जुदा कर दे अब तू मुझ से
मेरे वजूद का हिस्सा न रख
अब और जुदा मुझ से
वरना तू ही सोच तुझे
खुदा कहूंगा अपने किस मुँह से
वो चाहता तो कई
सितारे तराशता मुझ से
शायद उसे सितारे पसंद नहीं
वरना वो यूँ दूर न रहता मुझ से
वो एक ख़त जो लिखा
ही नहीं गया मुझ से
वो अध लिखा खत आज
भी मांगता है बाकी अनकहे
सारे लफ्ज़ मुझ से
किस की क्या मजाल जो
उस को छीनता मुझ से
गर वो ही नहीं चाहता
दूर जाना मुझ से
अभी ख़फ़ा है मोहब्बत
का वो खुदा मुझ से
तभी तो अता नहीं करता
वो मेरी चाहत का फल मुझ से !
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