अंधेरों को कोसते लम्हे !
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
जिस तरह किसी,
मुफ़लिस की तकदीर का,
सितारा बहुत दूर कहीं अँधेरी,
राहों में भटक कर दम तोड़ रहा है;
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शाम होते ही बस्ती,
का चप्पा-चप्पा घुप्प,
अंधेरों में डूब जाता है;
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
ऐसे में सुनने की,
ताकत से सरगोशियां,
करते हुए सन्नाटें है, और
अंधेरों को कोसते हुए लम्हे है;
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
और दूर से आती हुई,
किसी बेबस की पुकार,
जब एहसासों से टकराती है;
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
तब थरथराते हुए,
वज़ूद दुआओं में लीन,
हो कर ख़ुदा को आवाज़ देते है !
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जिस तरह किसी,
मुफ़लिस की तकदीर का,
सितारा बहुत दूर कहीं अँधेरी,
राहों में भटक कर दम तोड़ रहा है;
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शाम होते ही बस्ती,
का चप्पा-चप्पा घुप्प,
अंधेरों में डूब जाता है;
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ऐसे में सुनने की,
ताकत से सरगोशियां,
करते हुए सन्नाटें है, और
अंधेरों को कोसते हुए लम्हे है;
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और दूर से आती हुई,
किसी बेबस की पुकार,
जब एहसासों से टकराती है;
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तब थरथराते हुए,
वज़ूद दुआओं में लीन,
हो कर ख़ुदा को आवाज़ देते है !
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