बाजार-ए-दिल !
मुझे कतई ये अंदाज़ा ना था,
की जब तुम जीना जीना मेरे;
इस दिल में उतरोगे तब उस के सारे,
बसंत को पतझड़ में बदल दोगे;
मुझे कतई ये भी अंदाज़ा ना था,
की जब तुम आओगे तो साथ अपने;
जन्नत और जहन्नुम दोनों लाओगे,
ख़ुशी के आँसूं और गम के झरने दोनों;
दोनों एक साथ ही फूटेंगे और मेरे,
फैलाये दामन में तसव्वुर से कहीं आगे,
का सुख और दुःख दोनों अता होगा;
जरा सोचो तुम बाजार-ए-दिल में इस,
से बुरा होता भी तो क्या होता !
No comments:
Post a Comment