Wednesday, 15 May 2019

बाजार-ए-दिल !


बाजार-ए-दिल !

मुझे कतई ये अंदाज़ा ना था, 
की जब तुम जीना जीना मेरे; 

इस दिल में उतरोगे तब उस के सारे, 
बसंत को पतझड़ में बदल दोगे;

मुझे कतई ये भी अंदाज़ा ना था, 
की जब तुम आओगे तो साथ अपने;

जन्नत और जहन्नुम दोनों लाओगे,
ख़ुशी के आँसूं और गम के झरने दोनों; 

दोनों एक साथ ही फूटेंगे और मेरे,  
फैलाये दामन में तसव्वुर से कहीं आगे,
का सुख और दुःख दोनों अता होगा; 

जरा सोचो तुम बाजार-ए-दिल में इस, 
से बुरा होता भी तो क्या होता !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !