Thursday, 27 February 2020

मेरी कमी !


मेरी कमी !

सुनो ये बे-मौसम 
बारिश बे-सबब नहीं है  
ये कुदरत भी अच्छी 
तरह से समझती है 
मेरे ज़ज़्बातों को भी 
अच्छी से जानती है 
और भीगा-भीगा सा 
ये मेरा मन अब 
छलकने को आतुर है 
पर मैं अपनी इन आँखों 
से हर बार तुम्हे वो   
जतलाना नहीं चाहती हूँ 
अपना भींगापन अपनी 
भींगी भींगी आँखों से 
आखिर मैं ही क्यों 
हर बात जतलाऊँ 
क्या तुम्हे मेरी कमी 
बिलकुल नहीं खलती है !    


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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !