Saturday, 29 February 2020

उफनता सागर !


उफनता सागर !

सागर भरा है 
मेरी आँखों में तेरे प्यार का 
जो उफ़न आता है 
रह रह कर और बह जाता है 
भिगोंकर पलकों की कोरों को 
फिर रह जाती है
एक सुखी सी लकीर 
आँखों और लबों के बीच 
जो अक्सर बयां कर जाती है 
मेरे तमाम दर्दों को 
सुनो तुम रोक लिया करो 
उस उफनते नमकीन
से सागर को और फिर 
ना बहने दिया करो 
उन्हें मेरे कपोलों पर
क्योंकि देख कर वो 
सीले कपोल और डबडबाई
ऑंखें मेरी भर ही आता है 
तुम्हारे हिय का सागर भी !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !