ख़्वाबों की राह !
रात के चेहरों की
सौग़ातें चुनती हूँ
उलझे हुए ख़्वाबों
की बरसातें बुनती हूँ
घुप्प होता अँधियारा
उचटती हुई नींदें
करवट दर करवट
तड़पती हुई रूह
को देखती हूँ
दीवारों की गुप-चुप
आवाज़ें सुनती हूँ
छत पर सरकते हुए
धुँधले साये अनबुझ
आकृति का आभाष
दिलाते रहते है
उन साये के दिए
हुए आशीष वचन
मैं सुनती हूँ और
अधूरे ख़्वाबों के
पुरे होने की राह
देखती रहती हूँ !
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