दर्द की सौगात !
सुनो मैं आज बिलकुल
भी नहीं रोई जानते हो क्यों !
क्योंकि मैं रो कर तुम्हारे
दिए दर्दों को और हल्का
नहीं करना चाहती !
तुम्हारे दिए दर्द सौगात हैं
मेरे लिए जिसको मैं किसी
और से बाँट भी नहीं सकती !
दर्द की ये घुटन मेरे इन दर्दों
को अपने आंसुओं से कहीं
हल्का कर दे !
इसलिए ही तो आँखों में इन्हे
कैद कर के मैंने अपनी पलकों
पर पहरा बैठा रखा है !
ताकि तुम्हारे दिए दर्द यूँ ही
सदा सहेजे रखूं मैं अपने ह्रदय
के रसातल में !
सुनो मैं आज बिलकुल
भी नहीं रोई जानते हो क्यों !
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