Friday, 28 February 2020

दर्द की सौगात !


दर्द की सौगात !

सुनो मैं आज बिलकुल 
भी नहीं रोई जानते हो क्यों !
क्योंकि मैं रो कर तुम्हारे 
दिए दर्दों को और हल्का 
नहीं करना चाहती !   
तुम्हारे दिए दर्द सौगात हैं 
मेरे लिए जिसको मैं किसी 
और से बाँट भी नहीं सकती !
दर्द की ये घुटन मेरे इन दर्दों 
को अपने आंसुओं से कहीं 
हल्का कर दे !
इसलिए ही तो आँखों में इन्हे 
कैद कर के मैंने अपनी पलकों 
पर पहरा बैठा रखा है ! 
ताकि तुम्हारे दिए दर्द यूँ ही 
सदा सहेजे रखूं मैं अपने ह्रदय 
के रसातल में ! 
सुनो मैं आज बिलकुल 
भी नहीं रोई जानते हो क्यों !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !