सांसों के जखीरे !
आसमां के सितारे मचलकर
जिस पहर रात के हुस्न पर
दस्तक दें !
निगोड़ी चांदनी जब लजाकर
समंदर की बाँहों में समा कर
सिमट जाए !
हवाओं की सर्द ओढ़नी जब
आकर बिखरे दरख्तों के
शानों पर !
उस पहर तुम चांदनी बन
फलक की सीढ़ियों से निचे
उतर आना !
फिर चुपके से मेरी इन हथेलियों
पर तुम वो नसीब लिख कर
जाना !
जिस के सामीप्य की चाहत में
मैंने चंद सांसों के जखीरे अपने
जिस्म की तलहटी में छुपा
रखे है !
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