Tuesday, 18 February 2020

उम्मीदों की कोंपलें !


उम्मीदों की कोंपलें !

उजालों के बदन पर 
अक्सर....
उम्मीदों की कोंपलें 
खिलती है....
जाने कितनी ख़्वाहिशों 
के छाले....
पल में भरते है पल में
फूटते है..... 
उड़ जाते है पल में 
छिटककर.....
हथेलियों से सब्र के 
जुगनू.....
और दिल का बैचैन 
समंदर.....
बिन आहट करवट
बदलता है.....
ठिठकी हुई रात की 
सरगोशी में.....
फुट-फुट कर बहता है 
ज़ज़्बों का दरिया.....
शिकवे आंसुओं की 
कलाई थाम.....
मेरे सिरहाने आकर 
बैठ जाते है !               

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !