Wednesday, 19 February 2020

उमंगो का दरिया !


उमंगो का दरिया !

चाँद से झरती झिलमिल 
रश्मियों के बीचों बीच उस 
मखमली सी ख़्वाहिश का 
सुनहरा सा बदन हौले से 
छू कर तुम सुलगा दो ना !
इन पलकों पर जो सुबह 
ठिठकी है उस सुबह को 
तुम अपनी आहट से एक 
बार जरा अलसा दो ना !
बैचैन उमंगो का जो दरिया 
पल पल अंगड़ाई लेता है 
पास आकर मेरे तुम उन 
सब को सहला दो ना !
फिर छू कर सांसों को मेरी 
तुम मेरे हिस्से की चांदनी 
मुझे फिर से लौटा दो ना !       

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !