उमंगो का दरिया !
चाँद से झरती झिलमिल
रश्मियों के बीचों बीच उस
मखमली सी ख़्वाहिश का
सुनहरा सा बदन हौले से
छू कर तुम सुलगा दो ना !
इन पलकों पर जो सुबह
ठिठकी है उस सुबह को
तुम अपनी आहट से एक
बार जरा अलसा दो ना !
बैचैन उमंगो का जो दरिया
पल पल अंगड़ाई लेता है
पास आकर मेरे तुम उन
सब को सहला दो ना !
फिर छू कर सांसों को मेरी
तुम मेरे हिस्से की चांदनी
मुझे फिर से लौटा दो ना !
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