Sunday 23 December 2018

मेरी सांसों की डोर !

मेरी सांसों की डोर !
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लपेट दी है मैंने
अपनी सांसों की 
डोर तुम्हारे वृत्त 
के चारों ओर तुम्हारा 
ही नाम जपते हुए 
मैंने तुमसे ही छुपाकर 
बांध दी है अपनी सांसों 
की डोर इतनी मज़बूती
से उन सभी गांठों 
में की अब तुम मेरी
ज़िन्दगी की सांसें 
पूरी होने के पहले 
चाहकर भी नहीं 
खोल पाओगी इन 
गांठों को बिना मेरी
सांसों की डोर को 
अपने वृत्त से काटे हुए ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !