Monday 10 December 2018

कोई नयी मज़बूरी!

कोई नयी मज़बूरी!
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तुम्हे सोचती हूँ तो 
पाती हूँ तुम्हे अपने 
ही आस पास यही कंही 
लेकिन जैसे ही तुम्हे छूने 
की कोशिश करती हूँ तो 
टूट जाता है मेरा एक और 
मधुर स्वप्न लेकिन ये जो 
मेरी पलकों पर अनगिनत 
मोती छुपे है तुम्हारे इंतज़ार 
के वो बस तेरी एक झलक के
तलबगार हैं और जो मेरे लबों 
पर आने को बेताब है बर्षों से 
उस मुस्कराहट को बस एक 
तेरे आने का इंतज़ार है इतना 
कुछ जानकर भी जो तुम हो 
दूर मुझसे अब तक क्या उसे 
भी तुम्हारा प्यार समझू या 
तुम्हारी कोई नयी मज़बूरी 
ये तो अब बतला दो मुझे तुम !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !