मेरे दर्द को हर लेती है !
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अक्सर वो मेरे बालो में
अपनी पतली-पतली और
लम्बी-लम्बी अंगुलिया
फिराते फिराते हर लेती है;
मेरे हर दर्द को और एक
शिशु की तरह सिमट जाता
हु मैं उसकी गोलाकार बाँहों
में और छोड़ देता हु;
खुद को बिलकुल निढाल
सा उसके हवाले उसकी
जकड़न में और कुछ देर
बाद ख़त्म हो जाता है;
द्वेत का भाव यानी
दो होने का भाव फिर
गहरी सांसो के बीच
उठती गिरती धड़कने
खामोश हो जाती है;
और मिलने लगती है
आत्माए जैसे जन्मो की
प्यासी हो और ऐसे ही
पलो में साकार होता है
सपना ज़िन्दगी का !
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