Saturday, 8 December 2018

मेरी हार की वजह!

मेरी हार की वजह!
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तुम जब भी मुझसे 
मिलती हो तो कहीं 
खोई-खोई सी ही तो 
रहती हो जैसे बूँदें
गिरती हैं पत्तों पर
पर फिसल कर मिल  
जाती है मिटटी में  
ठीक वैसे ही मेरी
कही हर बात तुम 
तक पहुंच कर लौट 
आती है वापस फिर 
मुझ तक और मैं 
जीत के भी हार ही 
जाता हूँ फिर एक बार
दर्द हारने का नहीं है 
मुझे दर्द है "वजह" का
तुम कैसे वजह बन 
सकती हो मेरी हार की!

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !