स्याह परछाईं का घेरा!
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हा ये सच है
की एक दिन भी
शताब्दी सा महसूस
होता है मुझे जब तुम
होती हो मुझसे दूर हा
थोड़ी सी भी दूर तब
जाने किन्यु ये रात
ओढ़ लेती है सुस्ती
और स्याही से भी
स्याह परछाई घेर
लेती है मुझे अपने
आगोश में और फिर
मैं तुम्हारे प्रेम को बुरी
नज़र से बचाने के लिए
काला धागा जो बांधा था
मैंने अपनी कलाई में
उसकी गांठे दुरुस्त
करने लग जाता हु
इस डर से की कंही
गुस्से में मैं ही उसे
तोड़ ना फेंकू कंही !
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