बुँदे झरती रहती है!
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दर्द छुपाना यूँ
तो आसान होता है
बारिशों के मौसमों
में तभी तो बारिश
जब-जब होती है
तब-तब देर तलक
बुँदे पत्तों से निचे
चुप-चाप झरती ही
रहती है मगर कई
बार दरख्तों ने भी
रिस-रिस कर उस
ऊँचे से आसमान
को छुआ है और
फिर उसी बारिश
ने उन्ही दरख्तों
की जड़ों को दी है
हर बार जीने की
एक नयी वजह
तभी तो बूंदों को
अच्छी तरह पता है
दर्दो से एक अलग
पहचान मिलती है !
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