Tuesday 25 December 2018

सच का स्वरुप !

सच का स्वरुप !
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कई बार जब 
अपने ज्ञान के 
चक्षुओं से देखता हु;

तो याद आता है 
कि सच का स्वरुप 
तो एक होता है;

चाहे वो सच तुम्हारा 
हो या वो सच मेरा हो 
या हो वो किसी ओर 
का तो भी;

पर हम दोनों के लिए
तो अब तक वो स्वरुप
दो अलग-अलग ही रहा;

और जंहा सच के स्वरूप 
ही दो हो वंहा समय अपनी 
बात कुछ इस तरह से कह  
जाता है कि;

बदल जाते है रिश्तों के 
मायने फिर आखिर कैसे 
टिके वो रिश्ते जिनमे सच 
के स्वरुप दो होते है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !