Wednesday, 19 December 2018

प्यास बुझा देना तुम!

प्यास बुझा देना तुम!
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निकला था खुद को 
तलाशने लेकिन दब  
कर रह गया हु अपनी 
ज़िम्मेदारियों के बोझ 
तले मैं ;

निकला था हंसी को 
तलाशने लेकिन डूब 
के रह गया हु आंसुओं 
के समंदर में मैं ;

निकला था खोजने को 
मरहम लेकिन वक़्त के 
खंजर के घाव से लथपथ 
पड़ा हु मैं ; 

कुछ यु की ये मैं हु या 
कोई और खुद को पहचान 
ही नहीं पा रहा हु मैं ;

निकला था खुद को 
ढूंढने खुद ही आज 
कंही खो गया हु मैं;

अब तुम मुझको ढूंढ 
लेना और शायद मिलूं 
प्यासा तुम्हे तो मेरी 
प्यास बुझा देना तुम !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !