तुम्हारा नाम "हम्म"!
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मेरे प्रेम ने तो उस
पहले ही दिन मुझे
विवश कर दिया था;
तुम्हे वो सब कह देने
जिसे कहने में अक्सर
एक प्रेमी को लग जाते है;
कई घंटे दिन महीनो और
कई बार तो सालों भी पर
मैं उस प्रेम की उफनती नदी
में कुछ इस कदर बहा की;
उस पहले ही दिन मैं
नहीं रह पाया तुम्हे ये
कहे बगैर की मैं तुम्हे
बेइंतेहा मोहब्बत करता हु;
तब सर से पांव तक विस्मृत
तुम मुझे देखती ही रह गयी थी
पर तुम्हारे दिल ने भी मेरे दिल
की इस इल्तिज़ा को स्वीकार लिया था;
तभी तो तुम कुछ देर
निरुत्तर सी नज़रें नीची
कर सिर्फ इतना कह पायी थी "हम्म';
ठीक उसी पल मैंने
तुम्हारा नाम "हम्म"
रख दिया था !
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