Monday, 24 December 2018

सर्दी की बारिश !

सर्दी की बारिश !
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आओ इस सर्दी   
की बारिश में 
हम और तुम 
मिलकर खूब 
भीगते है;

थरथराते होंठों 
और सर्दी से 
उठती कँपकपी 
को मिटा देते है;

हम और तुम 
अपनी अपनी 
अग्नि से फिर 
करते है;

संवाद अपनी 
अपनी नज़रों से
कुछ इस तरह की 
जिव्हा को उसकी  
औकात दिखा देते है;
  
फिर मैं तुम्हे 
जी लेता हु पूरी 
की पूरी;
  
और तुम भी 
जी लेना मुझे 
पूरा का पूरा ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !