सर्दी की बारिश !
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आओ इस सर्दी
की बारिश में
हम और तुम
मिलकर खूब
भीगते है;
थरथराते होंठों
और सर्दी से
उठती कँपकपी
को मिटा देते है;
हम और तुम
अपनी अपनी
अग्नि से फिर
करते है;
संवाद अपनी
अपनी नज़रों से
कुछ इस तरह की
जिव्हा को उसकी
औकात दिखा देते है;
फिर मैं तुम्हे
जी लेता हु पूरी
की पूरी;
और तुम भी
जी लेना मुझे
पूरा का पूरा !
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