Wednesday, 12 December 2018

चाहतों की ग्रीवा !


चाहतों की ग्रीवा !
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कब तक तुम 
यु ही दुनियावी 
दिखावे के लिए 
मेरी चाहतों की 
ग्रीवा को दबाये 
रखोगी सुनो ये 
ख्याल रखना की 
कंही ऐसा ना हो 
की भूलवश तुम्हारे 
ही हाथों के दवाब से 
मेरी वो तमाम हसरतें 
दम तोड़ दे जिन्होंने 
जन्म लिया था तुम्हारी 
ही बाँहों के घेरे में फिर 
मुझे ना कहना जब 
तुम्हारा ये निसकलंक 
यौवन मेरी हसरतों की 
मौत का वज़न उठाकर 
चलते हुए ज़िन्दगी की 
राह पर भटक कंही और 
पराश्रय ना ले ले !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !