मेरी कलम की स्याही!
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तुम जब नहीं होती
मेरे ख्यालों में तब
मेरे चारो तरफ एक
खालीपन सा होता है
मौत की आँखों में
ऑंखें डाल कर बात
करने का हौसला रखने
वाला "प्रखर" उस वक़्त
कोरे कागज़ से भी नज़र
मिलाने में सकुचाता है
जब कुछ लिखने बैठता है
तो शब्द भी ठहरते नहीं
कागज पर और वो कोरा
कागज़ जो हवा के एक
झोंके के आगे अक्सर
घुटने टेक देता है वो
कागज़ का छोटा सा टुकड़ा
टुकुर-टुकुर ताकने लगता है
लगता है जैसे पूछ रहा हो
क्या हुआ कलम के धनी
कहलाने वाले "प्रखर" लिखो
कुछ लिख कर दिखलाओ
मुझ पर तब मानूंगा तुम्हे
कलमकार आज जब वो
नहीं है तुम्हारी सोच में
तो तुम यही मान लेना
तुम्हारी कलम की स्याही
वो है जो तुमसे अपना
प्रेम लिखवाती है !
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