मुट्ठी में रख लूंगा !
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सोचा था मैंने
इस मेरी मुट्ठी में
संभाल कर और
सबसे छुपा कर
रख लूंगा तुम्हे,
बड़े जतन से
बंद की थी ये
मुट्ठी मैंने रख
कर तुम्हे यु अंदर,
पर न जाने कैसे
और कब तू फिसल
कर मेरी मुट्ठी से यु
समय की तरह आगे
बढ़ गयी कि,
सूखी रेत की किरकिरी
की तरह मेरी इस हस्ती
में रड़कती रह गयी है;
और अब देखता हु
जब खुद की मुट्ठी तो
आँखें मेरी यु ही बरबस
समंदर हुए जाती है !
में रख लूंगा !
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