Monday, 26 November 2018

रिश्तों का कारवां !

रिश्तों का कारवां !
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एहसासों की पगडंडियों 
पर रिश्तों का कारवां 
उम्मीदों के सहारे आगे 
बढ़ता जाता है लेकिन 
जिस दिन से एहसास 
कम होने लगते है, 
उस दिन से उम्मीदें
स्वतः ही दम तोड़ने 
लगती है और ज़िन्दगी 
की वो ही पगडंडियां जो 
कारवों से भरी रहती थी, 
वो उमीदों के रहते हुए भी 
अचानक सुनसान नज़र 
आने लगती है और ये 
उम्मीदें जो दबे पांव 
आकर हावी हुई रहती है, 
रिश्तो की डोर पर वो 
डगमगाने लगती है, 
लेकिन जो रिश्तों की 
डोर बुनी होती है, 
मतलब के धागों से 
वो टूट जाती है क्योंकि 
डोर होती है बुनी उसी 
विश्वास के धागो से 
जो बोझ उठा लेता है, 
उन सभी रिश्तों की 
उमीदों का !

1 comment:

Sudha Devrani said...

ज़िन्दगी की वो ही पगडंडियां जो
कारवों से भरी रहती थी,
वो उमीदों के रहते हुए भी
अचानक सुनसान नज़र
आने लगती है और ये
उम्मीदें जो दबे पांव
आकर हावी हुई रहती है,
रिश्तो की डोर पर वो
डगमगाने लगती है,
बहुत खूब....

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !