Tuesday 13 November 2018

सुख-दुःख का मौसम !

सुख-दुःख का मौसम !  
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सुख के मौसम 
में राहत भरा 
स्पर्श बनकर;

दुःख के मौसम
में हंसी का ठहाका
बनकर;

धुप में तेरे 
सर पर छांव
का छाता बनकर;

थकान में देह 
का आरामदेह 
बिछौना बनकर;

और विरह की 
वेदना में साथ 
के लिए बुनी 
चादर बनकर;

मैं रहूँगा सदा
साथ तुम्हारे 
तुम्हारी ही जैसे
परछाई बनकर !   

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !