Thursday, 8 November 2018

चलो हम-सब दीप जलाएं !

चलो हम-सब दीप जलाएं ! 
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हर ओर है तम छाया 
इतने दीप कंहा से लाऊ,
जंहा-जंहा है तम गहराया 
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं; 

एक भाव के आंगन में 
एक आस की दहलीज़ पर, 
एक निज हिय के द्वार पर
एक सत्य के सिंघासन पर; 

तुम बनो माटी दीपक की 
मैं उसकी बाती बन जाऊ,
जंहा-जंहा है तम गहराया 
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं; 

एक देह के तहखाने में भी 
स्वप्निल तारों की छत पर भी, 
एक प्यार की पगडण्डी पर भी 
खुले विचारों के मत पर भी ;

जले हम-तुम फिर बिन बुझे 
तेल बन तिल-तिल जल जाए,
जंहा-जंहा है तम गहराया 
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं; 

एक यारों की बैठक में 
एक ईमान की राहों पर,
एक नयी सोच की खिड़की पर
एक तरह तरह की हंसी के चौराहे पर; 

दीप की लौ जो कभी सहमे 
तुफानो से उसे हम तुम बचाएं,
जंहा-जंहा है तम गहराया 
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं; 

बचपन की गलियों में भी 
और यादों के मेले में भी, 
अनुभव की तिजोरी में भी 
और दौड़ती उम्र के बाड़े में भी; 

बाती की भी अपनी सीमा है 
चलो उसकी भी उम्र बढ़ाते है,
बाती को बाती से जोड़ देते है 
जंहा-जंहा है तम गहराया 
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं; 

आज हार है निश्चित तम की
जग में ये आस जगा आएं;
सुबह का सूरज जब तक आये 
तब तक प्रकाश के प्रहरी बन जाए,
जंहा-जंहा है तम गहराया 
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !